बहनेण
घुटनों पर सिर रखे
बैठी हैं
पोखर के जल में
एक साँवली साँझ की तरह
काँपती है
घर की याद
खूँटियों पर टंगी होंगी
भाइयों की कमीज़ें
आंगन में फूले होंगे
गेंदे के फूल
रसोई में खट रही होगी माँ
सोचती हैं बहनें
क्या वे होंगी
उस घर की स्मृति में
एक ओस भीगा फूल
और सुबकती हैं
उनकी सिसकियाँ
अंधेरे में
फड़फड़ाकर उड़ती हैं
पक्षियों की तरह
और जाकर बैठ जाती हैं
अपने गाँव
अपने घर की मुंडेर पर ।