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आग / अनिल चावड़ा / मालिनी गौतम
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आग एक मार्ग है
आवन-जावन का
मेरे माता-पिता की देह में लगी किसी शरीरी आग ने
मेरे देह रूपी बीज को बोया था
पीड़ा की परम अग्नि में तपकर
मेरी माँ ने मुझे जन्म दिया था
मेरे अन्दर की आग ने ही
किसी स्त्री के प्रति मुझे आकर्षित किया था
दो बाँस की टकराहट से
जैसे सुलग उठता है पूरा जंगल
वैसी ही कोई आग सुलगी थी
मेरे अन्दर भी ।
दुख, पीड़ा, निःश्वास की
अनेक चिंगारियों ने
मुझे एक चूल्हा साबित कर दिया है
कभी जलता हूँ
कभी सिंकता हूँ
लेकिन फिर भी चलता रहता हूँ
देखो वहाँ दूर-दूर
आग की धधकती ज्वाला
मेरी प्रतीक्षा कर रही है
मुझे अन्तिम बार आलिंगन में लेने के लिए
मृत्यु अर्थात अग्नि-मिलन तो नहीं ?
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : मालिनी गौतम