भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर न सँभले दम निकलेगा / अशोक अंजुम

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 9 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक अंजुम |अनुवादक= |संग्रह=अशोक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगर न सँभले दम निकलेगा!
गुलदस्ते में बम निकलेगा!

राम कहेगा अगर शराबी,
मुँह से उसके ‘रम’ निकलेगा!

अगर खोज होगी क़ातिल की,
वो मेरा हमदम निकलेगा!

नज़र पर्स पर है बीवी की,
वेट सुबह कुछ कम निकलेगा!

हम तो समझ रहे थे नेता,
ख़बर किसे थी ‘यम’ निकलेगा!

न्याय खोजता न्यायालय में,
बच बेट्टे! बेदम निकलेगा!