केवल ढाई सौ ग्राम / नेहा नरुका
कविता एक किलो आम की तरह नहीं होती
फलवाले को फ़ोन मिलाया
वह जी सर, जी मेडम करता
घर भागा आया और पन्नी में बाँधकर रख गया एक किलो ताज़ा, स्वादिष्ट और रसभरे आम
कविता की दुनिया में ऐसा नहीं सम्भव
ढाई सौ ग्राम शिल्प लिया
ढाई सौ ग्राम सम्वेदना
और मिक्सी में चलाकर बना दी रस, छन्द, अलंकार, प्रतीक, बिम्ब, फैण्टेसी युक्त कलात्मक, कमाल, कालजयी कविता
उधर सम्पादक ने फ़ोन घनघनाया और इधर झट से मेल कर दी गई महान कविता
कवि ख़ुश, सम्पादक ख़ुश, पाठक ख़ुश, आलोचक न्यौछावर
लो पूरा हुआ कविता संसार
कविता में जीवन की तरह अनगिनत अनिश्चताएँ हैं
जैसे जीवन में नहीं मालुम घर से तैयार होकर स्कूल में दोस्तों के साथ पोर्न देखने वाला लड़का
मन्दिर में मिलने आई प्रेमिका को गुलाब का फूल देगा
या खेत की मेड़ पर टट्टी कर रही कक्षा चार की बलिका के साथ करेगा बलात्कार
इसलिए जो घड़ी-घड़ी तखरी लिए कविता को तौलते फिरते हैं
वे कभी-कभी मुझे उन क्रूर, कायर और कपटी सम्बन्धियों की तरह लगते हैं
जो कहते हैं प्यार तो करो हमसे पर केवल ढाई सौ ग्राम
हम भी करेंगे बदले में ढाई सौ ग्राम
और मैं शून्य बटे सन्नाटा प्रेम करके लौट आती हूँ
लौट आती हूँ कलाविदों के पास से भी यूँ ही
बिचारे इतना भी नहीं समझते लड़का अगर प्रेम देता तो कविता से सुगन्ध झड़ती
लड़के ने की है हिंसा तो कविता का फट पड़ा है कलेजा ।
फ़रवरी 2025