मुश्किल है समझना / संतोष श्रीवास्तव
मैं तब भी नहीं
समझ पाई थी तुम्हें
जब सितारों भरी रात में
डेक पर लेट कर
अनंत आकाश की
गहराइयों में डूबकर
तुमने कहा था
हाँ प्यार है मुझे तुमसे
समुद्र करीब ही गरजा था
करीब ही उछली थी एक लहर
बहुत करीब से
एक तारा टूट कर हंसा था
तब तुमने कहा था
हाँ प्यार है मुझे तुमसे
जब युद्ध के बुलावे पर
जाते हुए तुम्हारे कदम
रुके थे पलभर
तुमने मेरे माथे को
चूम कर कहा था
इंतजार करना मेरा
तुम्हारी जीप
रात में धंसती चली गई
एक लाल रोशनी लिये
मुझे लगा
अनुराग के उस लाल रंग में
सर्वांग मैं भी तो डूब चुकी हूँ
हाँ मैं बताना चाहूँगी
तुम्हारे लौटने पर
कि तुम्हारी असीमित गहराई
तुम्हारी ऊँचाईयों
को जानना
मेरी कूबत से परे है
मैंने तो तुम्हारी
बंद खिड़की की दरार से
तुम्हें एक नज़र देखा भर है
और बस प्यार किया है