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सफर जारी है / संतोष श्रीवास्तव

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उम्र के करघे पर
सांसों के ताने बाने से
बुनती रही सपने
कुछ बंद
कुछ खुली आँखों के
नहीं जान पाई वह सूत
जो आँखों पर धरे
सपनों की क़िस्मत
तय कर पाता

कुछ रिश्ते भी तो
बुने थे मैंने
अनजाने,अनचीन्हे
मंजिल तक
किसी का साथ न रहा
रास्ते थे बीहड़ ,
ठोकरें अनंत
मैं तनहा ही सही
मंजिल पाने की ज़िद में
अब भी पथरीले
कांटो भरे
दुर्गम रास्तों पर
मेरा सफ़र जारी है