Last modified on 22 मार्च 2025, at 22:06

सपनों में स्मृतियाँ / संतोष श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:06, 22 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बंद पलकों में
एक दुनिया चल पड़ती है
सपनों की
सपनों में स्मृतियाँ हैं
स्मृतियाँ उमड़ती हैं
तो सपने हरे हो जाते हैं
धूप के गुनगुने एहसास
आकाश तक तन जाते हैं
मौसम झाँकने लगते हैं
 
वह पिघलता लम्हा
जब शेफाली झरी थी
फूल फूल
रात्रि के अँतिम प्रहर
सदियों की चौखट लाँघ
 मैं पहुँची थी तुम तक
अभिसारिका बन
तुमने मेरे अंधेरों में
एक भोर टाँक दी थी
और मैं सुनहली हो उठी थी
तब से यह सुनहलापन
पूरब के आगोश में है
और मैं रीती