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प्रहर बसंती / संतोष श्रीवास्तव

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हवा संग उड़ के आई
ख़ुश्क पत्तों की लहर
तालाब में
डोल गया पेड़ की
डाली का साया

डोल गई
किनारों की कुमुदनी
साये के मृदु स्पर्श से
आहिस्ता नज़ाकत से
अपनी जामुनी कलियों को
पंखुड़ियों में बदल
खिल पड़ती है कुमुदनी

कौन जान पाता है
साये का ऐसा आलिंगन
कौन जान पाता है
कुमुदनी के खिलने की
मौन भाषा
बस एक प्रहर बसंती