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कारवां चलता रहा / संतोष श्रीवास्तव

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बेलगाम अरमानों का कारवां
छू लेना चाहता है
आसमान की बुलंदियाँ

पाताल तक पहुँच
खंगालना चाहता है
धरती का गर्भ
संवाद करना चाहता है
बेशकीमती खजाने से
जिसके बल पर
कायम है दुनिया

हवा को चीरता
पहुँच जाना चाहता है
भोजपत्र के जंगलों में
जिस पर लिखे
बेशकीमती ग्रंथ
संस्कृति क़ायम रखे हैं
दुनिया में

समंदर की लहरों पर
तैराना चाहता है
झंझावातों से जूझती
चाहत की कश्तियाँ
नदी की धाराओ सँग
पूरा का पूरा समंदर
बाहों में
भर लेना चाहता है

कुछ इस मिज़ाज का कारवां
चलता रहा संग उम्र भर
मैं ही चीन्ह नहीं पाई
वरना
क्या नहीं होता मेरे पास