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चढ़ाई का जुनून / संतोष श्रीवास्तव

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चिड़िया फुदकती हुई
शीशम की
जिस डाल पर बैठी है
उसके तने पर
पहली कुल्हाड़ी चल चुकी है

शीशम कट रहा है
उसके कटने की आवाज़
जंगल का दिल दहला रही है

 देख रही है चिड़िया
अपने घोसले को
धराशाई होते
अपने घायल चूजों को
तड़पते, मरते

उसकी कातर पुकार
नहीं पहुँच पाती
उन सोपानो तक
जिनकी ऊँचाइयाँ
आकाश छू रही हैं

सोपानो पर चढ़ते
पैरों के गहरे निशान
नहीं देख पाते
चिड़िया की कातरता
शीशम की पीड़ा भी तो
अनकही रह जाती है

चढ़ते पैरों का जुनून
कितना कुछ रौद डालता है