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उदास हूँ / कुंदन सिद्धार्थ
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उन प्रेमिकाओं के लिए उदास हूँ
जिनके प्रेमी युद्ध में मार दिये गये
उन बच्चों के लिए उदास हूँ
जो अपना जन्मदिन बगैर पिता मनायेंगे
उन पत्नियों के लिए उदास हूँ
जो यह शिकायत करती जियेंगी
कि युद्ध लड़े बिना क्यों नहीं रह सकती है दुनिया
कितना कमजोर पड़ गया प्रेम
घृणा कितनी भारी पड़ गयी
सोचकर उदास हूँ
उदास हूँ
कि एक दिन मैं भी मिट जाऊँगा
हो जाऊँगा राख, मिट्टी में मिल जाऊँगा
प्रेम करने वाले रोते रहेंगे
ठहाके लगायेंगे घृणा करने वाले
युद्ध जारी रहेगा
उदास हूँ
कि उदास होने
और उसे कविता में कह देने के सिवा
एक कवि कर भी क्या सकता है!