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प्रजातंत्र / कुंदन सिद्धार्थ

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वे कुछ शब्द रचते हैं
और हवा में उछाल देते हैं

वे कुछ मुद्राएँ गढ़ते हैं
और ज़मीन पर उतार देते हैं

वे शब्द और मुद्राओं की
युगलबंदी में दक्ष हैं

वे अच्छी तरह जानते हैं
कब और कहाँ किस शब्द को
हवा में उछालना है

वे अच्छी तरह जानते हैं
कब और कहाँ किस मुद्रा को
जमीन पर उतारना है

वे हवा के रुख
और ज़मीन के मिज़ाज को
तुरत पहचान लेते हैं

हम उनके शब्द पकड़ते हैं
और चारों खाने चित्त हो जाते हैं
हम उनकी मुद्राएँ निहारते हैं
और तुरत धराशायी हो जाते हैं

हम बेवकूफ मछलियाँ हैं
वे हैं शातिर मछुआरे
हम उनके शब्द और मुद्राओं के आटा लगे
झूठ और धूर्तता के काँटे को निगलने की कोशिश में
हमेशा मारे जाते हैं