भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लालसा / नाज़िम हिक़मत / सुरेश सलिल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:40, 5 अप्रैल 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नाज़िम हिक़मत |अनुवादक=सुरेश सलि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं समन्दर की तरफ़ वापस लौटने की
लालसा से भरा हुआ हूँ
भरा हुआ हूँ पानी के नीले आईने में झलकने
और बढ़ने की लालसा से
मैं समन्दर की तरफ़ वापस लौटने की
लालसा से भरा हुआ हूँ

जहाज़ रवाना होते हैं ख़ुशरौशन उफ़क की जानिब
और वह उदासी नहीं है, जो उनके
सफ़ेद पालों को तानती और फैलाती है
और बेशक, बस, एक दिन को ही
ख़ुद को जहाज़ पर सवार देखते रहने को
मेरी पूरी ज़िन्दगी काफ़ी होगी;

और मौत चूँकि ख़ुदा का फ़रमान है
मैं, पानी में दफ़्न एक लौ की मानिन्द
लालायित हूँ बुझ जाने को पानी में ही ।

मैं समन्दर की तरफ़ वापस लौटने की
लालसा से भरा हुआ हूँ
भरा हुआ हूँ समन्दर की तरफ़
वापस लौटने की लालसा से

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल