इतना तनहा जीवन क्यूँ है
सबमें इक खालीपन क्यूँ है
सूख चुके हैं आँसू सारे
फिर आँखों में सीलन क्यूँ है
अंतर्मन की ख़ामोशी में
ईच्छाओं का क्रंदन क्यूँ है
क्या है ? इस फानी दुनिया में
क्यूँ है यह सम्मोहन? क्यूँ है?
बाहर है जो कृष्ण सरीखा
अंदर से दुर्योधन क्यूँ है
प्यार माँगते फिरते हैं सब
हर प्रेमी आकिंचन क्यूँ है
संतों के सान्निध्य में जाना
यह संसार तपोवन क्यूँ है