भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात राई सी भी लगेगी पहाड़ / मधु 'मधुमन'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 27 अप्रैल 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु 'मधुमन' |अनुवादक= |संग्रह=दीवान...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात राई-सी भी लगेगी पहाड़
गर बनाएँगे आप तिल का ताड़

कैसे आएँ उमीद की किरणें
बंद रखते हैं लोग दिल के किवाड़

दिल हो ग़मगीन तो यूँ लगता है
जैसे सारा जहान ही हो उजाड़

रंजिशें ,नफ़रतें ,गिले ,शिकवे
दिल में रखते हैं लोग क्यूँ ये कबाड़

अच्छे-अच्छों के बल निकलते हैं
वक़्त करता है जब उखाड़ पछाड़

ज़िंदगी बेशक़ीमती है बहुत
इससे मत कीजिए कभी खिलवाड़

दिल में उगते हैं यूँ ख़याल कई
जैसे वीरान बस्तियों में झाड़

ख़ुद की करते हैं ग़मगुसारी हम
ले के ‘मधुमन’ सुख़नवरी की आड़