पूस बसंती फूल खिलाए,
दूब सँवारे रूप ।
मेरे आँगन में उतरी है ,
आज सुनहरी धूप ॥
सपनों की तुरपाई होती,
अब ओसारे में ।
अन्दर से इतराकर आती,
लाज दुआरे में ।
नभ के चाँद सितारों का इक,
आँगन में प्रतिरूप ॥
रिश्तों में गरमाहट आई ,
मान बढ़ाया है।
घर की तुलसी भी लहराई
मन हर्षाया है।
मंदिर-सा घर आज हुआ है,
पाकर पावन रूप ॥
शीत-लहर दुबकी बैठी है,
झुरमुट-झोली में ।
मेरी तो क़िस्मत उतरी है,
रेशम-डोली में ।
मुझको भी सौगात मिली है,
चाहत के अनुरूप ॥
मेरे आँगन में उतरी है ,
आज सुनहरी धूप ॥