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घिरो शब्द के मेघ / वीरेन्द्र वत्स

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घिरो शब्द के मेघ
गगन में घम्म-घम्म घहराओ
अररतोर बरसो
अंतर का कलुष बहा ले जाओ
शब्द तुम्हीं हो ब्रह्म
आज फिर अपने भीतर झाँको
अपनी उथल-पुथल की क्षमता
नये सिरे से आँको
तुम ही बिजली तुम्हीं आग हो
तुम दीवाली तुम्हीं फाग हो
तुम ही आँधी तुम्हीं श्वास हो
तुम्हीं लक्ष्य हो तुम्हीं आस हो
तुम्हीं नींद हो तुम अँगड़ाई
तुम्हीं स्वप्न हो तुम सच्चाई
जन्म तुम्हारा हुआ खेत-खलिहानों में
पले-बढ़े मजदूरों और किसानों में
शक्ति तुम्हारी अक्षय-अगम-अपार
राह तुम्हारी देख रहा संसार