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यह देश / वीरेन्द्र वत्स

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जिसका गर्वोन्नत शीश युगों तक था भू पर
लहरायी जिसकी कीर्ति सितारों को छूकर
जिसके वैभव का गान सृष्टि की लय में था
जिसकी विभूतियाँ देख विश्व विस्मय में था
जिसके दर्शन की प्यास लिये पश्चिम वाले
आये गिरि-गह्वर-सिन्धु लाँघकर मतवाले
वह देश वही भारत उसको क्या हुआ आज?
सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?
 
यह देश सूर, तुलसी, कबीर, रसखानों का
विज्ञानव्रती ऋषियों का वीर जवानों का
यह देश दीन-दुर्बल मजदूर किसानों का
टूटे सपनों का, लुटे हुए अरमानों का
जब-जब जागा इनमें सुषुप्त जनमत अपार
आ गया क्रांति का परिवर्तन का महाज्वार
ढह गए राज प्रासाद, बहा शोषक समाज
मिट गयी दानवों की माया आया सुराज
 
ये नहीं चाहते तोड़फोड़ या रक्तपात
ये नहीं चाहते प्रतिहिंसा-प्रतिशोध-घात
पर तुम ही इनको सदा छेड़ते आये हो
इनके धीरज के साथ खेलते आये हो
इनकी हड्डी पर राजभवन की दीवारें
कब तक जोड़ेंगी और तुम्हारी सरकारें?
रोको भवनों का भार, नींव की गरमाहट-
देती है ज्वालामुखी फूटने की आहट!!