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मैं कुछ कविताएँ लिख रहा हूँ / भव्य भसीन

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मैं कुछ कविताएँ लिख रहा हूँ,
लिख रहा हूँ तुम्हारे लिए।
एक लिखी है कदम्ब के पेड़ पर,
तुम्हारे कुंडल लहराते कैसे हैं, ये बताया है।
एक लिखी है यमुना जी की रेत पर,
तुम्हारे चरणों का सुख कैसा है, ये जताया है।
एक लिखी है किनारे खड़ी कश्ती पर,
तुम्हारे प्यारे खेलों का वर्णन उसमे आया है।
एक लिखी है पानी में बहते दीये पर,
जिसमे प्रार्थनाओं को तुम तक पहुँचाया है।
एक लिखी है अपने प्रतीक्षारत हृदय पर,
बस थोड़ा-सा विरह जिसमे समाया है।
एक लिखी नहीं हैं बस भावनाएँ उजाड़ हैं।
जिसे पढ़ने वाला मैं भी नहीं हूँ,
पर सदा से एक तुम्हें पाया है।