Last modified on 14 जून 2025, at 17:37

शांति / चन्द्र गुरुङ

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:37, 14 जून 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्र गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

और,
शुरू हुआ एक भयानक युद्ध
 
चलना सीख रहे बच्चों जैसी आशाएँ मारी गईं
अनेकों जवान इच्छाएँ दबकर ख़त्म हो गईं
बूढ़ी आस्थाएँ गिरकर बुझ गईं
पर कुछ नहीं बदला
 
कुछ नहीं बदला
ईर्ष्या और द्वेष के काँटे बढ़ते रहे
भेदभाव की ऊँची दीवारें उठती रहीं
कलुषित तलवार चमकती रही
मुस्कराती रही दिल के कोने में वैमनस्यता
 
एक दिन वह आया
उजड़े दिलों में उग आई हैं नई कोंपलें
अशांत आकाश में उड़ रही हैं इच्छाओं की पतंग
चारों ओर
फैला आस्था का उजियारा
फिर मुस्कुराया जीवन।