गांव में मोटर गाड़ी / चन्द्र गुरुङ
मेरे गाँव में
जिस साल मोटरगाड़ी आई थी
दिलों की आकाशगंगाओं में सपनों का धूमकेतु दिखा था
विचारों के पहाड़ों पर नई उम्मीदों का सूरज उगा था
क्षितिज में उड़े थे ख़ुशी के अस्त–व्यस्त पंछी
मेरे गाँव में
जिस साल मोटरगाड़ी आई थी
मोटर गाड़ी के साथ-साथ
आया था माँ का तन ढकने का फरिया
आई थी पिता की बीड़ी–सुर्ती
आया था बहन का लाल रिबन
आई थी भाई की आवाज़ निकालती चप्पल
मेरे गाँव में
मोटरगाड़ी आने के बाद
रास्ते के किनारों पर धूल से ढक गए हरे पेड़-पौधे
छत पर खड़ी हो गई टीवी एन्टेना की चोटी
खेतों के मुंडेर पर
उल्लू की तरह ताकता था बिजली का बल्ब
मेरे गाँव में
मोटरगाडी आकर भी बहुत साल तक
नहीं आया गाँव के घाव में मलहम लगाने वाला अस्पताल
नहीं आया परदेश से प्रियजन का सन्देश लाने वाला डाकघर
नहीं आया गाँव की आंखों को खोलने वाला स्कूल
मेरे गाँव में
मोटरगाड़ी आने के बाद
फैला सचिव की जगह का क्षेत्रफल, नहीं फैली सड़क
बढ़ी ठेकेदार के घर की ऊँचाई, नहीं बढ़ी सड़क
बना मंत्री आवास में ‘बार और स्पा’, नहीं बनी सड़क
उठा इंजीनियर का नया घर, नहीं बनी टूटी सड़क
मेरे गाँव में
पहली मोटरगाड़ी आने के बाद
थोड़ा लड़खड़ाता हुआ, थोड़ा रास्ता छोड़ता हुआ
चल रहा है विकास।