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पिता को एक शब्दांजलि / पूनम चौधरी

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आपका होना है सौभाग्य,
मिले जो छाया कड़ी धूप में
था शायद अनुकूल विधाता,
मिले जो हमको पिता रूप में ।।

शक्ति के थे स्रोत आप ही,
कठिन समय में बने हो संबल।
सदा की वर्षा अमृत की,
खुद पिया क्यों सदा हलाहल।।

रहे ओढ़कर सदा कठोरता,
प्रेम हृदय का देख ना पाए।
सारे सुख लिख दिए भाग्य में
बिना बड़प्पन बिना जताए।।

हम बच्चे थे समझ न पाए,
कभी कही न हमसे पीड़ा।
कैसे बोझ उठाते सबका,
और जुटाते सबकी सुविधा।।

फिर भी नहीं दुखाते मन को,
न रोया किस्मत का रोना।
यही सिखाया है जीवन भर
निश्चित है पाना और खोना।।

आप थे सिन्धु इच्छाओं के,
हमने भर- भर हाथ उलीचे।
आँसू, पीड़ा, धूप, पसीना
कष्ट थे कितने सुख के नीचे।।

नहीं दिखा वो त्याग, समर्पण
नहीं दिखा संघर्ष आपका।
खुद को देकर सींचा हमको
हम समझे कर्तव्य बाप का।।

जितना मिला वो असीम है,
क्या भरपाई हम कर पाए।
वो पिता है सब कुछ करके
तिलभर न अभिमान जताए।।

आज खड़े हैं जगह आपकी
पल- पल मन होता है भारी।
शब्द नहीं हैं हों उऋण हम,
क्षमा कर सको भूल हमारी।।

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