Last modified on 23 जून 2025, at 15:48

अप्रणय — 1 / राजकमल चौधरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 23 जून 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रणय एक स्वर शब्द है । तुम्हें
स्त्री की तरह द्वैत बनाने के लिए मैंने
अप्रणय का प्रपंच
रच लिया था । बाज़ार में
हिल्सा मछलियाँ । घर में क्वाँरी
बहनें ।
चौराहों पर अफ़ीम-रस में उबाली गई
चाय के स्टॉल । अख़बार में
अकाल सूचनाएँ ।
इस सारे प्रपंच ने मुझे रेलवे
टाइम-टेबुल में
और तुम्हारे यात्रा-विवरणों में
बाँध लिया है । जहाँ
पहले कविताएँ अपनी गाँठ बाँधती थीं
वहीं अब सिरोसिस का दर्द उभरता है ।
प्रणय इतना एकस्वर शब्द है
कि तुम
मेरे टेबुल पर फूलदान नहीं रहकर
स्त्री हो गई हो ।