Last modified on 27 नवम्बर 2008, at 21:16

ऎसी ही एक दुनिया / निर्मल आनन्द

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 27 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल आनन्द |संग्रह= }} <Poem> कोसों दूर से चलकर आए प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोसों दूर से चलकर आए पिता
पावस के इन दिनों में भीगते हुए
बहुत इंतज़ार के बाद
जैसे आया हो वसंत
उदास पतझड़ में

सुनाते रहे पिता गाँव का हालचाल
फ़सलों की हालत
और सुख-दुख की ख़बरें
पिता जिन्होंने मुझे दी एक दुनिया

ऎसी ही एक दुनिया
अपने बच्चे को देते समय
मैं भूलूंगा नहीं
पिता की दुनिया का नक्शा ।