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अगहन में किसान / निर्मल आनन्द

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वे तारों से नापते हैं
रात का समय
काम से रास्ते की दूरी

और कड़कड़ाती ठंड में
निकल पड़ते हैं
बैलगाड़ियाँ लिए खेतों की ओर

जाग जाते हैं खेत
रात के आख़िरी पहर में
उनके पहुँचते ही

रात कितनी ही अंधेरी हो
चुकते नहीं उनके अनुभवी हाथ
गाड़ी में बीड़ा रचते
भूलते नहीं उनके पाँव रास्ते

सूर्य की प्रथम किरणों के साथ
लौटते हैं वे
अन्न से लदी गाड़ियाँ लिए
अपने खलिहानों की ओर ।