Last modified on 16 जुलाई 2025, at 22:58

राजमाता मुझे रख ले / निहालचंद

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:58, 16 जुलाई 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निहालचंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHaryana...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राजमाता मुझे रखले, शरण तेरी मैं आई हूँ ।
जरूरत अन्न वस्त्र की, मैं विपता की सताई हूँ ॥टेक॥
जीव चुगता वहाँ जाकर, जहाँ का आबोदाना हो ।
अचानक मैं तेरे द्वारे, विधाता ने खन्दाई हूँ ।1।
पाप की दृष्टि से मुझको, तकै सो दुख उठावैगा ।
क्योंकि बलवान पतियों की, शुद्ध सच्ची कमाई हूँ ।2।
मिली मुझे ज्ञान की शिक्षा, मेहरबानी ये गुरुओं की ।
अर्थ और धर्म मर्यादा, कर्म करना सिखाई हूँ ।3।
निहालचन्द कर्म कर्ता को, पड़ै फल भोगणा ज़रूरी ।
जन्म देते पिता-माता, पढ़ाई और गुनाई हूँ ।4।