भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माड़ा भाग लिखाया के द्यूँ / निहालचंद

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:01, 16 जुलाई 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निहालचंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHaryana...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं ना देवी ना देवता और ना इन्द्र की हूर ।
हैं पाँच पति गन्धर्व मेरे, पै राखैं हेत ज़रूर ॥
मैं विपता की मारी फिरूँ, मेरी ना काया नै होश ।
जो तू मन मैं सोचती राणी, ना सै सौ-सौ कोस ॥

माड़ा भाग लिखाया के द्यूँ, रूप जळे नै फूँक ।
मैं किसके बालम मोहूँ रोऊँ, दूभर होर्या टूक ॥टेक॥
बेदन खोटी भूख-प्यास की,
सिंह नहीं छोड़ै जबक माँस की,
और आशिक कोन्या तजै आशकी, ना मोह तजते माशूक ।1।

फर्क पतिभ्रता के दिल मैं आज्या,
उस दिन घोर अन्धेरा छाज्या,
मेरी बेशक नाड़ काट लिए पाज्या, जै चाल-चलण मैं चूक ।2।

जो बुरी नज़र से मनै लखाले,
वो ख़ुद अपणा नाश कराले,
मेरे पतियाँ धौरै जाले-गी, दुख-दर्द भरी मेरी हूक ।3।

निहालचन्द कहैं काज सार दें,
दुष्ट का वे धड़ तै शीश तार दें,
इसी कसूती मार, मार दें, आवै लहू की बूक ।4।