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भाई दस महीने आई नै / निहालचंद

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भाई दस महीने आई नै हो लिए राख लई नई दासी।
पतिभ्रता के लक्षण इसमैं, भज्या करै अविनाशी ॥टेक॥
मींह-आन्धी टळज्या, पर या, नित्त उठ अस्नान करै सै ।
सन्ध्या तरपण पूजा, इष्टदेव का ध्यान करै सै ।
सवा पहर दिन चढ़ले ज्यब, सूक्ष्म जलपान करै सै ।
साधू ब्राह्मण अभ्यागत, सबका सम्मान करै सै ।
दोनूँ बख्ताँ माळा फेरै, या बैठ कै एकड़वासी ।1।
पढ़ी-लिखी बड़ी चतुर हंस ज्यूँ, दूध और पाणी छाणै ।
ना अपनी करै बड़ाई और के, औगुण नहीं बखाणै ।
छोट्टे-बड्डे, ऊँच्चे-नीच्चे, सारे क़ायदे जाणै ।
जब कोए पुरुष आंवता दीखै, फट उठ घूँघट ताणै ।
मनैं सब तरियाँ अजमाई, ना पाई मीन और मेख जरा-सी ।2।
सुणै कथा भागवत, ग्रहस्थ-धर्म, सीखै और हमें सिखावै ।
आशा, तृष्णा, दुविधा, दुर्मति, की नहीं तरफ़ लखावै ।
अमृत भर्या रहै जीह्वा मैं, नित चाखै और चखावै ।
रवि मंगल पुन्नम एकादशी का, राखै व्रत रखावै ।
गऊ ब्राह्मण साधू नै जिमा, अन्न-जल करै बरतीबासी ।3।
शक्ति, सावित्री, दमयन्ती और सुलोचना सती प्यारी ।
अनुसुइया, तारावती, सीता, थी पतिभ्रता नारी ।
द्रौपदी केसे गुण इसमैं, घणी सेवा करै हमारी ।
पाँच पति गन्धर्व हैं इसके, शूरवीर बलकारी ।
कहैं निहालचन्द बचकै रहिए, कदे खोदे ज्यान टका-सी ।4।