Last modified on 16 जुलाई 2025, at 23:10

अरे भ्रात मतना छेड़िये (सोहनी) / निहालचंद

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 16 जुलाई 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निहालचंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatHaryana...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अरे भ्रात मतना छेड़िये, अबला बीर की जात रे ।
द्यूँ ज्ञान की शिक्षा तनै, टुक ठहरज्या घड़ी स्यात रे ॥टेक॥
करने गुज़ारा आ रही, मेरे रूसगे रघुनाथ रे ।
तू नृप हम रैयत तेरी, मतना लगाइये हाथ रे ।1।
तेरै राज का अभिमान है, कहता कुफ्र की बात रे ।
गन्धर्व पति मेरे पाँच हैं, रक्षा करैं दिन रात रे ।2।
सुण दमयन्ती नैं नीच का, भाई भष्म कर दिया गात रे ।
भिरगु ऋषि की इस्त्री, ले ज्या था दान्ना साथ रे ।3.।
वो नहूष गेर्या सुर्ग से, करने लग्या उत्पात रे ।
कहैं निहालचन्द रावण मर्या, तेरी तो क्या औक़ात रे ।4।