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बेरोजगार बेटे से / अशोक अंजुम

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प्रिय बेटे!
मैं देख रहा हूँ
तुम्हारे चेहरे पर जो
बादलों की मोटी परत जम गई है
ये बादल न गरजते हैं,
न बरसते हैं
बस उमस पैदा करते हैं
मैं देखता हूँ
आने, मिलने वालों का कहना कि
फलां-फलां का बेटा
इतने-उतने पैकेज पर
यहाँ है
वहाँ है
जबकि वे शायद ख़ुद नहीं जानते
कहाँ है!
तुम क्या कर रहे हो?
कितना चुभता है!
तब अपने आप को
बाँधे रखने की कोशिश में
तुम अंदर ही अंदर
कितना बिखर जाते हो।
मैं देखता हूँ
इधर तुम घर के,
आस-पड़ोस के
बच्चों में गुम हो जाते हो
जानता हूँ
यह तुम्हारा टिटहरी प्रयास है
पनपती जड़ता को तोड़ने का!
यह कठिन समय है बेटे!
बहुत कठिन समय।
लेकिन मुझे विश्वास है
बादल अवश्य बरसेंगे
और वह समय भी आएगा
जब इस जड़ता के चक्रव्यूह को
पूरी तरह भेद कर
जीत हासिल करके निकलोगे इससे बाहर
और तुम्हारी योग्यता पर संदेह करने वाले
पीट रहे होंगे अपनी छाती!