भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मानुष राग / जितेन्द्र श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:17, 28 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र श्रीवास्तव |संग्रह= }} <Poem> धन्यवाद पित...)
धन्यवाद पिता
कि आपने चलना सिखाया
अक्षरों
शब्दों
और चेहरों को पढ़ना सिखाया
धन्यवाद पिता
कि आपने मेंड़ पर बैठना ही नहीं
खेत में उतरना भी सिखाया
बड़े होकर
बड़े-बड़े ओहदों पर पहुँचने वालों की
कहानियाँ ही नहीं सुनाईं
छोटे-छोटे कामों का बड़ा महत्त्व बताया
सिर्फ़ काम कराना नहीं
काम करना भी सिखाया
धन्यवाद पिता
कि आपने मानुष राग सिखाया
बहुत-बहुत धन्यवाद
यह जानते हुए भी
कि पिता और पुत्र के बीच
कोई अर्थ नहीं धन्यवाद का
धन्यवाद
कि आपने कृतज्ञ होना
और धन्यवाद करना सिखाया
धन्यवाद पिता
रोम-रोम से धन्यवाद
कि आपने लेना ही नहीं
उऋण होना भी सिखाया
धन्यवाद
धन्यवाद पिता!!