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उदास घड़ी / शुभम श्रीवास्तव ओम

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गूँगी-बहरी दीवारों पर
एक उदास घड़ी ।

विचारार्थ अब भी रसीद है
बडे़ 'स्साब' का टेबल ख़ाली,
अजगर डस्टबिन की अरज़ी
बिल फर्ज़ी है, बातें ज़ाली,

सरकारी कैलेण्डर का
सहती उपहास घड़ी ।

कल-पुर्जों की माँगें फिर भी
हेडफ़ोन, रीमिक्स तराने,
गुमसुम चलने लगी आजकल
वही व्यस्तता, वही बहाने,

ब्रेड, कर्टसी, ठगी और
करती उपवास घड़ी ।

कुहरा, सड़कें, रूठा सूरज
पंचिंग-दौड़ और कोलाहल,
ठीक समय पर कमरे खुलते
आदिम और मशीनी हलचल,

धूप जोहती छत —
दिन ढलने का अहसास घड़ी ।