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करनी-कथनी / शिशुपाल सिंह 'निर्धन'

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करनी-कथनी में
जबकि दूरी है,
गीत की व्यंजना
अधूरी है,
गीत हो,
आत्मा की भाषा हो,
वरना लिखना ही
क्या ज़रूरी है ।