Last modified on 17 अगस्त 2025, at 22:44

यार ये ज़ख़्म / चरण जीत चरण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 17 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चरण जीत चरण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खाली बर्तन को भर भी सकते थे
तेरे ग़म से उभर भी सकते थे

बस अहद कर लिया था जीने का
वर्ना उस रोज़ मर भी सकते थे

इक मैं, इक तू थी और तन्हाई
हम कि हद से गुजर भी सकते थे

बाकी दुनिया से ख़ैर क्या ? तुझसे
थोड़ी उम्मीद कर भी सकते थे

गर मुसलसल जले नहीं होते
यार ये ज़ख़्म भर भी सकते थे