Last modified on 21 अगस्त 2025, at 22:46

आत्मा / विनीत पाण्डेय

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 21 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनीत पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

“हे केशव! आत्मा क्या है” ?
“हे पार्थ ! आत्मा ईश्वर का अंश है,
जीवन का कारण है,
पुराने शरीर को त्याग,
नए को करती धारण है”।

“हे माधव ! इसके गुण क्या हैं” ?
“हे अर्जुन ! आत्मा अजर है, अमर है,
ये न तलवार से कटती है,
न आग में जलती है,
ना ही किसी को दिखती है,
पर हाँ, अगर राजनीति में हो,
तो कौड़ियों से ले कर करोड़ो में बिकती है”।

“अच्छा ? और ब्युरोक्रसी में हो तो” ?
“फिर आत्मा पावरफुल हो जाती है,
और अपना पावर, अपने से
कमजोर आत्मा पर आज़मा ती है”।

“और बिजनेस वाली” ?
“देखो ऐसा होता है,
इस कैटगरी की आत्मा के पास पैसा होता है”।
“ये करती है दान, देती है चंदा,
फिर राजनीति और ब्युरोक्रेसी वाली
आत्माओं को साथ ले कर करती है अपना धंधा”।

और आम आदमी की आत्मा ?
आम आदमी की ??
आम आदमी की आत्मा
सबसे अद्भुत होती है
अपेक्षाओं, दायित्वों,
संवेदनाओं का वज़न ढोती है
न्याय के लिए आवाज़ उठाती है,
आन्दोलनों में जाती है
रैलियों में हिस्सा लेती है,
भाषण सुन के वोट देती है
ये स्वप्न देखती है और उन्हें
पूरा करने के लिए कमाती है
और यही करते करते एक दिन
एक शरीर छोड़ कर
दूसरे में चली जाती है