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फूलों से लकदक / अमरकांत कुमर

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फूलों से लकदक ओ कामिनी वासित सभी दिगन्त है,
तेरे मदिर सुगंध बदौलत मौसम यह श्रीमन्त है।

लचकदार फुनगी पर हरे श्वेत कुसुम का मुस्काना।
पूर्वैया में झूमझूम कर गंध पवन का मिल जाना,
रात-रात भर महक-महक कर साँसों में फ़िर घुल जाना
सब का ले आभार महक कर जन-जन में हिल-मिल जाना,
सदा प्रसन्न ही तुम दिखती हो, अनुकरणीय ये पन्थ है॥ फूलों

तू संदेश है नव जीवन का, रात कहाँ सो पाती है
साँझ होते ही पोर-पोर में भर सुगंध परमाती है ,
मधु मधुकरी वृत्तिवाली मधुमक्खी आ मँडराती है
तुमको भी मधुदान उसे कर यह मनुहार तो भाती है;
त्यागवृत्ति से सारा जीवन सुख से करती अन्त है॥फूलों

तू हेमन्त की कुसुम कामिनी, तू फूलों में पटरानी
तेरा नाम सकल जगजाने, तेरा कहीं न है सानी,
तेरी गंध रात भर मह-मह कर जाती है पहचानी
सारी कुसुमगंध आगे तेरे मानो भरती है पानी;
तू चिर यौवन, तू चिर सुन्दर, अमर तेरा सीमन्त है॥ फूलों