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आ भी जाओ / अमरकांत कुमर

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आ भी जाओ प्यार ने तुझको पुकारा है
हृदय ने फ़िर हृदय पर कि हृदय हारा है॥

लो नहीं कलि की परीक्षा, हृदय कोमल है
ओस की बूँदें न समझो, अश्रु का जल है
जब खिलेगी उपवनो में गंध भर देगी
निश्छल समर्पण का उसे संप्राप्त-सा बल है
आओ मधुकर सम्हल कर! पिच्छिल किनारा है॥ आ भी ...
 
स्वर्नदी का मौज बहने लगी धरती पर
हम बहे जाते हैं मानो जलावर्ती पर
मंजरी के रजकणों का सींचना पल-पल
कल्पलतिका लतर जाये जैसे परती पर
प्रेम का दिव्यावरण स्वर्गों से प्यारा है॥ आ भी...

हे सजन! नस-नस में अमृत धार बहती है
हर चटख में कलि-हृदय में प्रीति रहती है
पल्लवोंके नर्त्तनों में स्वर्ण-घट खुलता
तेरी बातें कान में मधु डार कहती है
मत सिमट, खुल, सर्ग ने भुज को पसारा है। आ भी...