तपते दिन हैं, आवारा मन छाँव तलाश रहा।
जहाँ गुदगुदी माटी, गाछी गाँव तलाश रहा॥
रंग-बिरंगे परिधानों में रोपे सुन्दरियाँ
जहाँ हवा के संग नाचती-गाती हों परियाँ
जहाँ चहकती डालों पर नानावर्णी चिड़ियाँ
बूँदे नहीं, गिरा करती हों मोती-सी कणियाँ
राग भरे हर कंठों में ठहराव तलाश रहा॥ तपते...
जहाँ प्रथम वर्षा में सौधी-सौधी उठे ग़मक
धुल-धुल कर हर पल्लव कोमल फ़िर से उठे चमक
शीष उठाए दूर्वा तब पगडंडी जाए बहक
रह-रह करके सहलाती पूर्वाई आए सिहक
मन कर जाए बाग-बाग वह ठाँव तलाश रहा॥ तपते...
प्राती की हर पाँती में प्रार्थना-सने दुःख हो
साँझ की होती स्तुतियों में पीड़ा-हर सुख हो
हर मिलने आये बान्धव का हँसता-सा मुख हो
नेह भरे हर सम्बंधों में सच्चा-सा रुख हो
झुक जाए मन सहज भाव वह पाँव तलाश रहा॥ तपते...
झर-झर झरते झरने हो कि कल-कल-सी नदियाँ
मन करता सौ बरस बिता दूँ अनगिन-सी सदियाँ
रिमझिम में आकाश स्वच्छ धुल जाए गंदगियाँ
हो नित स्वर्गिक स्वच्छ समीरण प्रमुदित जिन्दगियाँ
मुझको उस तट पर रहना है, नाव तलाश रहा॥ तपते...