बीज जब
धरती के अँधेरे गर्भ में
सोया हुआ रहता है,
उसके भीतर छिपी चिंगारी
प्रकाश को तलाशती है।
जड़ें गहराती हैं,
टहनियाँ फैलती हैं,
और एक दिन
हरियाली सूरज की गदोरी छू लेती है।
पक्षी आकाश की खिड़की खोलते हैं,
अपने गीतों में भविष्य का मानचित्र रचते हैं।
उनके पंखों की फड़फड़ाहट
उनकी साँसों से जुड़ जाती है।
जैसे वे कह रहे हों--
“उड़ान ही अस्तित्व है।”
मनुष्य भी तो
इसी यात्रा का सहयात्री है।
हर श्वास एक अंकुर,
हर स्वप्न एक पत्ता,
हर प्रयास एक फूल।
जितना हम गिरते हैं,
उससे अधिक यदि उठते रहें
तो जीवन खिलता है।
चूल्हे की गर्मी से उठती भाप,
भोजन की महक,
रोटी की फूली परत,
चावल के नरम दाने,
ये सब याद दिलाते हैं
कि हमें देने के लिए ही
धरती ने कितना कुछ उपजाया है।