भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथ / जॉर्ज डे लिमा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 11 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जॉर्ज डे लिमा |संग्रह= }} रात के भीतर भरा है मौसम ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रात के भीतर भरा है मौसम का बखेड़ा

तिलस्मी कैरॉवल

हल्के भार का जहाज़ निकल पड़ता है

चक्का घूमता है वक़्त का

नाराज़ करता हुआ पानी को

बिलखती है हवा तेज़ बेशक़्ल

तिलस्मी कैरॉवल घूमता है

जहाज़ के इर्दगिर्द

किसका हाथ है इस क़दर विराट

समंदर जैसा

नाविक का

आख़िर किसका

समंदर में समा जाता है कैरॉवल

वह तनकर खड़ा है बदशक़्ल

जहाज़ की सतह पर विराट हाथ

लहू से लथपथ

कैरॉवल फिर से काटता है चक्कर

टिमटिमाते तारे टपकते हैं

कैरॉवल लगा है यथावत

समंदर फेंकता है लहरें

नज़र नहीं आती ज़मीन

फिर टपकते हैं तारे

कैरॉवल यथावत जहाज़ पर

उधर है फिर भी वही विराट हाथ


अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल