भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मरी हुई आत्माएँ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:53, 14 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथप्रसाद तिवारी |संग्रह= }} <Poem> मरी हुई आत्...)
मरी हुई आत्माएँ रात को निकल पड़ी हैं
सड़कें खाली करो
दरवाज़े खोल दो
वे अपने प्रेमियों के पास जाएंगी
वे सिंहासनों पर बैठेंगी
वे ताज़े फल खाएंगी
रोशनी की दमक तुम्हारी थी
अंधेरी रातें उनकी हैं।