भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो मेरा रकी़ब था यारो / श्याम सखा 'श्याम'
Kavita Kosh से
अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:48, 20 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम' }} <Poem> वो मेरा रकी़ब था यारो दिल ...)
वो मेरा रकी़ब था यारो
दिल के पर करीब था यारो
चाहतों की चाह थी जिससे
वो लिये ज़रीब था यारो
पागलों सी बातें थी उसकी
फिर जरूर अदीब था यारो
गुम हुआ रकीब जब मेरा
मैं हुआ गरीब था यारो
दोस्त दुश्मनों सा ही तो था
मामला अजीब था यारो
अपने ही हुए थे बेगाने
‘श्याम’बदनसीब था यारो