भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोशन हाथों की दस्तकें / सतीश चौबे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:58, 23 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतीश चौबे |संग्रह= }} <Poem> प्राची की सांझ और पश्चि...)
प्राची की सांझ
और पश्चिम की रात
इनकी वय:संधि का
जश्न है आज
मज़ारों पर चिराग बालने वाले हाथ
(जो शायद किसी रुह के ही हों)
ठहर जाएँ।
नदियों पर दिये बहाने वाले हाथ
(जो शायद किसी नववधू के ही हों)
ठहर जाएँ।
और खानों में लालटेनें ले जाने वाले हाथ
(जो शायद किसी मज़दूर के ही हों)
ठहर जाएँ।
सभी
रोशनी देने वाले हाथ मिलें
और कसकर बांध लें एक-दूसरे को आज
ताकि यहीं से मारना शुरू करें दस्तकें
विश्व के अंधेरे कपाटों पर
मिले-जुले
कसकर बंधे
रोशन हाथ।