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तो फिर आज ही क्यों नहीं / राजकुमार कुंभज

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पक्षी ख़ामोश नहीं हैं
नदियाँ भी ख़ामोश नहीं हैं
यहाँ तक कि वृक्ष भी ख़ामोश नहीं हैं
और बहते पानी को सहतीं
चट्टानें भी बोलती रहती हैं निरन्तर
तो फिर मैं ही क्यों रहूँ ख़ामोश?
किसी न किसी दिन तो बोलना होगा
मछली को मगरमच्छ के ख़िलाफ़
तो फिर आज ही क्यों नहीं।