भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आसमान में तारे की तरह / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:03, 26 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अगरबत्ती जलाने से
इतनी भी रोशनी नहीं होती
कि एक आदमी अपना रास्ता देख सके
एक चमक-सी मालूम होती है
और धीरे-धीरे फैलती है
हल्की ख़ुशबू
जिसे अन्धे भी महसूस कर सकते हैं

अने वाले दिन पता नहीं कैसे हों
कभी कोई अच्छी बात सुनाई देगी
तो लगेगा
अंधेरे शहर में अगरबत्ती जल रही है

अगरबत्ती मशाल नहीं बन सकती
वह ख़त्म होने तक टिमटिमाती है
जैसे ख़त्म हो जाने के बाद उसकी याद
आसमान में एक तारे की तरह।