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कौतुक-कथा / बद्रीनारायण

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धूप चाहती थी, बारिश चाहती थी, चाहते थे ठेकेदार
कि यह बेशकीमती पेड़ सूख जाए
चोर, अपराधी, तस्कर, हत्यारे, मंत्री के रिश्तेदार
फिल्म ऐक्टर, पुरोहित, वे सब जो बेशकीमती लकड़ियों के
और इन लकड़ियों पर पागल हिरण के सीगों के व्यापार
में लगे थे

पेड़ अजब था,
पेड़ सूखता था और सूखते-सूखते फिर हरा हो जाता था
एक चिड़िया जैसे ही आकर बैठती थी
सूखा पेड़ हरा हो जाता था
उसमें आ जाते थे नर्म, कोमल नए-नए पत्ते
और जैसे ही चिड़िया जाती थी दिन दुनियादारी, दानापानी की तलाश में
फिर वह सूख जाता था
वे ख़ुश होते थे, ख़ुशी में गाने लगते थे उन्मादी गीत
और आरा ले उस वृक्ष को काटने आ जाते थे
वे समझ नहीं पा रहे थे, ऐसा क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है
एक दिन गहन शोध कर उनके दल के एक सिद्धांतकार ने गढ़ी
सैद्धांतिकी
कि पेड़ को अगर सुखाना है तो इस चिड़िया को मारना होगा
फिर क्या था
नियुक्त कर दिये गए अनंत शिकारी
कई तोप साज दिये गए
बिछा दिए गए अनेक जाल
वह आधी रात का समय था
दिन बुधवार था, जंगल के बीच एक चमकता बाज़ार था
पूर्णिमा की चांदनी में पेड़ से मिलन की अनंत कामना से आतुर
आती चिड़िया को कैद कर लिया गया
उसे अनेक तीरों से बींधा गया
उसे ठीहे पर रख भोथरे चाकू से बार-बार काटा गया
उसे तोप की नली में बांध कर तोप से दागा गया
सबने सुझाए तरह तरह के तरीके, तरह तरह के तरीकों
से उसे मारा गया
इतने के बाद भी जब सब उसे मिल मारने में हो गए असफल
तो उनमें से एक कोफ़्त में आ
उसे साबुत कच्चा निगल गया
चिड़िया उड़ गई, उड़ गई चिड़िया फुर्र से
उसके पेट से
उसे हतने के व्यवसाय में लगे लोग काफ़ी बाद में समझ पाए
कि यह चिड़िया सिर्फ चिड़िया न होकर
स्मृतियों का पुंज है
जिसे न तो हता जा सकता है
न मारा जा सकता है
न ही जलाया जा सकता है