भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐतिहासिक फ़ासले / कुंवर नारायण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:22, 27 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंवर नारायण |संग्रह= }} <Poem> अच्छी तरह याद है तब ते...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अच्छी तरह याद है
तब तेरह दिन लगे थे ट्रेन से
साइबेरिया के मैदानों को पार करके
मास्को से बाइजिंग तक पहुँचने में।

अब केवल सात दिन लगते हैं
उसी फ़ासले को तय करने में −
हवाई जहाज से सात घंटे भी नहीं लगते।

पुराने ज़मानों में बरसों लगते थे
उसी दूरी को तय करने में।

दूरियों का भूगोल नहीं
उनका समय बदलता है।