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देर तक सोना चाहता हूँ / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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पापा मत कहो कि सुबह हो गई है
मुझे देर तक सोना है
खिड़कियाँ खोल दो और चले जाओ
मुझे स्कूल की याद मत दिलाओ

हवा आएगी और मेरे कान पकडे़गी
किरणें बिस्तर में आकर गुदगुदाएंगी
मैं जाग जाऊंगा
माँ मुझे दुबका रहने दो

स्कूल की बेल बजे तो खिड़की मे क़िताब रख देना
हवा पढ़ लेगी और मैं सुन लूंगा अपना पाठ
मुझे कोई भी जल्दी मत जगाना
आज मैं देर तक सोना चाहता हूँ