भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसके बोल मुझे बोलना है / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 2 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवल शुक्ल |संग्रह=दसों दिशाओं में / नवल शुक्ल }} <P...)
जंगलों, पहाड़ों में चलते हुए
एक बार एक आदमी ने
अपना घर बनाया
खेती की सड़कें बनाईं।
उसने तारों को देखा
अपनी पृथ्वी के बाहर, पृथ्वी
अपने समय से बाहर, समय
उसे बार-बार पकड़ना चाहा।
वह उदास हुआ
फिर कहा तुम्हें प्यार करता हूँ
यह उसने पहली बार कहा
करोड़ों बार सुनने के बाद
उसने भी पहली बार सुना
इतने में सब-कुछ बदल चुका।
सब-कुछ उस आदमी के शब्दों में है
वहाँ अभी कुछ नहीं बदला है
उसके बोल मुझे बोलने हैं।