भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोयल और बच्चा / विजयदेव नारायण साही

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 7 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयदेव नारायण साही |संग्रह=साखी / विजयदेव नारा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सन्तो ऎसा मैंने एक अजूबा देखा

आज कहीं कोयल बोली
मौसम में पहली बार
और उसके साथ ही, पिछवाड़े,
किसी बच्चे ने उसकी नकल कर के
उसे चिढ़ाया कू... कू...

देर तक यह बोलना-चिढ़ाना चला।
खीज कर कोयल चुप हो गई
ख़ुश हो कर बच्चा।